Sunday, March 28, 2010

मुझे कोई तो समझाये

मुझे कोई तो समझाये कि
आजकल
अखबारों के अलावा
देश की जनता
जुल्म के खिलाफ बोलती क्यों नहीं
और आवाज़ क्यों नहीं उठाती
तुमने देखा कि
देश के बारे में योजनाएँ बनाई जा रही हैं
और भ्रष्टाचार की चादर फैलने लगी है

मै आपसे कहता हूँ .. जाओ, ज़ोर से चीख़ो.
नेताओं के चमचो के कानो में
आदमी की आवाज बहुत दूर तक जाती है
बे-आवाज होकर भी
बुलंद आवाज़ से चीख़ो
"भिन्डी जैसी नाक वालो
तरबूज जैसी खोपडी वालो
और कद्दू जैसे पेट वालो
तुम सब चोर हो "
देखो, जवाब कौन देता है
सवाल करो और जवाब हासिल करो

ख़ासतौर पर हमें अपनी आवाज़ों में दम भरना पड़ेगा
जिससे ये फरिश्तों तक पहुँच सकें -
इन दिनों वे ऊँचा सुनने लगे हैं
हमारे चुप रहने के कारण
ख़ामोशी से भर दिये गए पात्रों में
गोता लगाकर गुम हो गए हैं वे

क्या इतने सारे भ्रष्टाचारों के लिए
अपने आपको तैयार कर चुके हैं हम
या अब ख़ामोशी की आदत-सी हो गई है ?
यदि हम अब भी अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करेंगे
तो काई न कोई (हमारा अपना ही) हमारा घर लूट ले जाएगा

ऐसा हो गया है कि
सुभाष ,भगत सिंह जैसे
महान उदघोषकों की आवाज़ सुनकर भी
अब हम गौरैयों जैसे झाड़ियों में दुबक कर
अपनी अपनी जान की ख़ैर मना रहे हैं ?

कुछ विद्धानों ने हमारा जीवन महज सात दिनों का बताया है।
एक हफ़्ते में हम कहाँ तक पहुँचते हैं ?
क्या आज भी गुरुवार ही है ?
फुर्ती दिखाओ, अपनी आवाज़ बुलंद करो
रविवार देखते-देखते आ जाएगा

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