मेरे शब्द आक्रोश भरे होते है सड़ी गली व्यस्था के खिलाफ जिसने भारत को रसातल में पहुचा दिया और देश की करीब दो तिहाई आबादी को पशु जैसा जीवन जीने को मजबूर कर दिया आज भी वो व्यस्था हमको सला रही है रुला रही है ..जाति और धर्म की कढाई में मनुष्यों को तला जा रहा है ..मेरे शब्द उन्ही दीन हीनों को अर्पित है .मेरी कविता उन्ही की आवाज है जो आज भी बेजुबान है .मेरे शब्द बोलते नहीं अपितु खून खोलाते है ...क्यों की मुकन्दा जब भी बोलता है समझो की खून खोलता हैं
गुंगापन मेरी भाषा है
मौन मेरी आशा है
मेरे पास बस एक पूंजी है
शब्दों की
मेरे पास एक पूरी दुनिया है
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