जफा के ये धागे जो
उलझे है मन में
अहद-ए-मोहब्बत को जीने ना देंगे
हयात-ऐ गमो के सायो में रहके
शय -ऐ -करीबी आने ना देंगे
तेरी इन्तेजां मेरी फकत आरजू थी
जो धागों में लिपटी कटी जा रही थी
फ़तह का जश्न मै मनाऊ भी कैसे
खुशियाँ तो सारी बटी जा रही थी
तंगी में फिर भी प्याले ना तोडे
खुशी के जाम अब पीने ना देंगे
अहद-ए-मोहब्बत को जीने ना देंगे ..............
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment