Sunday, March 28, 2010

अमरता

अमरता

जब अतीत के काले पन्ने
उजले बरखो पर उडेले जाते है
किसी कायर के द्वारा
और सभ्यता के नाम पर
संकोची विचार घुट्टी में पिलाए जाते है
धर्म की अफीम का नशा
इस कदर हावी होता है कि
जिस्म कटने पर
तब न ख़ून बहता है
न आँसू
जब धुप लोहा बनकर गिरती है
और खेतो से खून बहता है
जहां इंसान लहू से माथा धोकर
जेल की सलाखों से बाहर आता है
कवि का सन्देश गीत बनकर
समझ लो उस वक्त
कवि के गीत अस्त्र बन कर बाहर आते है
कवि के पास ना बन्दूक है ना गोला
परन्तु फिर भी कवी से जब दुश्मन डरता है
दुश्मन को उसके शब्दों से भय लगाने लगता है
और गोला बारूद होते हुए भी निहत्थे कवि को
कैद कर लेता है
बाँध देता है बेडियों में और
चढा देता है फांसी
परन्तु फांसी के तख्ते के नीचे होती है कायरता
और फासी के रस्से के बीच झूलती है अमरता
कायरता अमरता को कभी मार ही नहीं सकती
कुओ कि कवी तो जीता है
अपनी कविताओं में गीतों में
जनता के बीच में
लोगो के ह्रदयों में
काल के साथ साथ चलता है
कवी का कलम
ना मिटने वाले समय तक
और कायरता भस्म हो जाती है
खरपतवार की तरह चंद ही दिनों में
कोई याद नहीं रखता उसे
जब कि कवी लोगो के दिलो में हमेशा
जिंदा रहता है ..

No comments:

Post a Comment