ये दुनीया इंसानों की नहीं पहलवानों की है
वो एक पहलवान था
मेरी तरह
उद्धंड और दबंग
असीलियत और अनुभव कों
उसी तरह देखता था
जैसे अखाडे में
अपने प्रतिद्वंधी पहलवान कों
एक दिन मैंने उसे समझाया
पहलवान ये दुनिया
इंसानों के लिए है
वाह नेरी बात सुनकर सोचता रहा
घूरता रहा
टूटे हुए पुल की भांति
एक दुसरे के छोरो कों देखता रहा
आँखों से इस छोर से उस छोर तक
उसी लोक-चेतना को
बार-बार टेरता रहा
और मेरी और मुह करके चिल्लाया
"नहीं, नहीं मुकन्दा
ये दुनीया इंसानों की नहीं पहलवानों की है
तू मुर्ख है जो अपने आप कों पहलवान समझता है
मैं बताता हूँ असली पहलवान कौन है
आज भी ये दुनीया पहलवानों की है
नेता पहलवान है
उद्योगपति पहलवान है
व्यापारी पहलवान है
वकील पहलवान है
अधिकारी पहलवान है
मंत्री पहलवान है
बड़े बड़े अभिनेता और कवि लेखक भी पहलवान है
ठेकेदार पहलवान है
अमेरिका पहलवान है
ये दुनिया असल में पहलवानों की ही है
चाहे वो किसी भी अखाडे का हों
गाव के समाज से लेकर
सत्ता के शीर्ष तक का अखाडा
उसकी भाषा में
ना संज्ञा था ना सर्वनाम
और ना ही व्याकरण का भाव
उसके शब्द पत्थर की भांति धीरे धीरे
बाहर आ रहे थे
हर शब्द कों बाहर निकालते हुए
वह कह रहा था
सुन रे मुर्ख मुकन्दा
मैंने यहाँ ईमान दारो कों
बे-इमानो के तलुवे चाटते देखा है
बे-इमानो कों इंसानों की खाल उतारते देखा है
सरे आम निर्दोषों कों कोड लगते देखा है
मजलूम और औरतो का शोषण होते देखा है
माँ बहनों की इज्जत लुटते देखा है
कमरों कों भूखे मरते देखा है
कामचोरों कों माल पुवे खाते देखा है
किसानो कों आत्महत्या करते देखा है
व्यापारियों के कुत्तो कों पांच सितारा होटल में
होटल मेनेजरो द्वारा स्वादिष्ट मांस किखाते देखा है
धानाडेह सेठो की पतिव्रता पत्नियों कों
कल्ब में मौज उडाते देखा है
सत्य कों बे-इमानी के पैर दबाते देखा है
इंसानों कों करहाते देखा है
जुल्म की सौ इबारते पढ़ने वालो कों
इंसानियत पर कवीता लिखते देखा है
वकीलों कों गुंडों और अपराधियों के बीच
निलाम होते देखा है
अधिकारियो कों बे-इमानो के साथ
नाचते हुए देखा है
राम लाल सेठ की मरी हुई कुतिया के शव पर
नगर मेयर कों कंधा देते हुए देखा है
मगर शम्भू महतो जैसे गरीब के शव कों
धुप में सड़ते हुवे देखा है
और एक ईमान दार कों अपनी इमानदार पर
मलाल करते देखा है
एक इंसान कों इंसानियत पर रोते देखा है
लुलो लंगडो कों राष्टीय खेलो में खेलते देखा है
खिलाडियों कों आंसू बहाते देखा है
और तुम कहते हों दुनीया इंसानों की है
सुनो मुर्ख मुकन्दा जो मजे उडा रहे है
वो सब अपने अपने क्षेत्रो के पहलवान है
और जो रहे है वो सब इंसान है
धन ,ताकत और सत्ता के नशे में चूर
ये सब पहलवान है
जिनके पास साधन है
धन है
सत्ता है
बाहुबल है
मगर इंसानों के पास क्या है
इमानदारी
जो किसी भी काम की नहीं
आज इमानदार इंसानों के भीतर
शब्दभेदी सन्नाटा है
तुम अपने आप कों पहलवान कहते हों
तुम पहलवान होकर भी इंसान हों
और वे बे ईमान होकर भी पहलवान है
मैं फटे मुह से उसकी बाते सुनता रहा
और मैंने मससूस किया
जैसे मेरे अन्दर का पहलवान
धीरे धीरे मेरा साथ छोड रहा है
और मेरी रगों में एक इंसान
आहिस्ता आहिस्ता दौड़ रहा है ................ मुकन्दा
मेरी तरह
उद्धंड और दबंग
असीलियत और अनुभव कों
उसी तरह देखता था
जैसे अखाडे में
अपने प्रतिद्वंधी पहलवान कों
एक दिन मैंने उसे समझाया
पहलवान ये दुनिया
इंसानों के लिए है
वाह नेरी बात सुनकर सोचता रहा
घूरता रहा
टूटे हुए पुल की भांति
एक दुसरे के छोरो कों देखता रहा
आँखों से इस छोर से उस छोर तक
उसी लोक-चेतना को
बार-बार टेरता रहा
और मेरी और मुह करके चिल्लाया
"नहीं, नहीं मुकन्दा
ये दुनीया इंसानों की नहीं पहलवानों की है
तू मुर्ख है जो अपने आप कों पहलवान समझता है
मैं बताता हूँ असली पहलवान कौन है
आज भी ये दुनीया पहलवानों की है
नेता पहलवान है
उद्योगपति पहलवान है
व्यापारी पहलवान है
वकील पहलवान है
अधिकारी पहलवान है
मंत्री पहलवान है
बड़े बड़े अभिनेता और कवि लेखक भी पहलवान है
ठेकेदार पहलवान है
अमेरिका पहलवान है
ये दुनिया असल में पहलवानों की ही है
चाहे वो किसी भी अखाडे का हों
गाव के समाज से लेकर
सत्ता के शीर्ष तक का अखाडा
उसकी भाषा में
ना संज्ञा था ना सर्वनाम
और ना ही व्याकरण का भाव
उसके शब्द पत्थर की भांति धीरे धीरे
बाहर आ रहे थे
हर शब्द कों बाहर निकालते हुए
वह कह रहा था
सुन रे मुर्ख मुकन्दा
मैंने यहाँ ईमान दारो कों
बे-इमानो के तलुवे चाटते देखा है
बे-इमानो कों इंसानों की खाल उतारते देखा है
सरे आम निर्दोषों कों कोड लगते देखा है
मजलूम और औरतो का शोषण होते देखा है
माँ बहनों की इज्जत लुटते देखा है
कमरों कों भूखे मरते देखा है
कामचोरों कों माल पुवे खाते देखा है
किसानो कों आत्महत्या करते देखा है
व्यापारियों के कुत्तो कों पांच सितारा होटल में
होटल मेनेजरो द्वारा स्वादिष्ट मांस किखाते देखा है
धानाडेह सेठो की पतिव्रता पत्नियों कों
कल्ब में मौज उडाते देखा है
सत्य कों बे-इमानी के पैर दबाते देखा है
इंसानों कों करहाते देखा है
जुल्म की सौ इबारते पढ़ने वालो कों
इंसानियत पर कवीता लिखते देखा है
वकीलों कों गुंडों और अपराधियों के बीच
निलाम होते देखा है
अधिकारियो कों बे-इमानो के साथ
नाचते हुए देखा है
राम लाल सेठ की मरी हुई कुतिया के शव पर
नगर मेयर कों कंधा देते हुए देखा है
मगर शम्भू महतो जैसे गरीब के शव कों
धुप में सड़ते हुवे देखा है
और एक ईमान दार कों अपनी इमानदार पर
मलाल करते देखा है
एक इंसान कों इंसानियत पर रोते देखा है
लुलो लंगडो कों राष्टीय खेलो में खेलते देखा है
खिलाडियों कों आंसू बहाते देखा है
और तुम कहते हों दुनीया इंसानों की है
सुनो मुर्ख मुकन्दा जो मजे उडा रहे है
वो सब अपने अपने क्षेत्रो के पहलवान है
और जो रहे है वो सब इंसान है
धन ,ताकत और सत्ता के नशे में चूर
ये सब पहलवान है
जिनके पास साधन है
धन है
सत्ता है
बाहुबल है
मगर इंसानों के पास क्या है
इमानदारी
जो किसी भी काम की नहीं
आज इमानदार इंसानों के भीतर
शब्दभेदी सन्नाटा है
तुम अपने आप कों पहलवान कहते हों
तुम पहलवान होकर भी इंसान हों
और वे बे ईमान होकर भी पहलवान है
मैं फटे मुह से उसकी बाते सुनता रहा
और मैंने मससूस किया
जैसे मेरे अन्दर का पहलवान
धीरे धीरे मेरा साथ छोड रहा है
और मेरी रगों में एक इंसान
आहिस्ता आहिस्ता दौड़ रहा है ................ मुकन्दा
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