Sunday, March 28, 2010

जब शब्द कलम से नहीं
नाखूनों से लिखे जाते है
और बारूद के धुओ से , छुरों से
मैं गाऊंगा कैसे
अपनी लाचारी में , शोषण में
अस्पताल में, जुल्म के नीचे
बेरोज़गारों के बीच, पिंजरों में फंसी हुई
लाखों बुलबुलें मेरे भीतर हैं
मैं गाऊंगा
कैसे गाऊंगा
अपने संघर्ष के गीत
मैंने राष्ट्र के कर्णधारों को
सड़को पर
किश्तियों की खोज में
भटकते हुए देखा है................



अतीत का मनन और मन्थन हम भविष्य के लिये संकेत पाने के प्रयोजन से करते हैं। वर्तमान में अपने आपको असमर्थ पाकर भी हम अपने अतीत में अपनी क्षमता का परिचय पाते हैं...मनुष्य से बड़ा है-केवल उसका अपना विश्वास और स्वयं उसका ही रचा हुआ विधान.. अपने विश्वास और विधान के सम्मुख ही मनुष्य विवशता अनुभव करता है और स्वयं ही वह उसे बदल भी देता है.. इसी सत्य को अपने चित्रमय अतीत की भूमि पर कल्पना में देखने का प्रयत्न है। मैं
भूखे, थके हुए, क्लान्त और निर्वासित लोगों की कर्कश आवाज़ हूँ .......

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