Sunday, March 28, 2010

मेरे स्वपन
मेरे स्वपन
अभी टूटे नहीं
मोतियों -से उच्छल आनंदित गीत
अभी रूठे नहीं
हालाकि अभी भी
कहीं-कहीं अन्धेरी रात है
और ठण्डे लोहे का शासन
हड्डियों को गला रहा है
पर सपने तो रात में ही
पैदा होते है
हालाकि रात का सूना कोहरा
मेरे गले में यूँ ही पल भर
बैठा रहता है
और मेरे गीतों की आवाज को
पूर्णविराम देता रहता है
परन्तु यह सब क्षणिक होता है
क्यों की सूरज न बाँधा जाता
ना रोका जाता
शीशे के दरवाज़ों और झरोखों पर
चाँद झाकता रहता है
और सूरज के नाम पर
सूरज को देखने की कामना
करता रहता है
रात की समाप्ति पर
चाँद रुग्ण चेहरे को
छुपाने की कौशिश करता है
मेरी गीत चुराकर
भागता है
पीली हवा और चाँदनी में
मेरी गीत कितने सुन्दर आते है
दोनों
मुझसे दूर भागने लगते है
चाँद के कहने पर
पर मुझे पता है
धरती की धूप
मुझे सब दे देंगी
सपनों की वापसी होगी
और गीतों की भी
अगर आप धारदार चाकू से
नरक के इन सैकड़ों-हज़ारों दूतो को
काट दोगे
फूंक दो अन्धकार के
बूतखानो को
तोड़ दो
इनके क़ैदख़ानों को
फिर देखो
जीवन की समस्त
धुप के मालिक आप ही हो
आप के होठो पर गुनगुनाएगे गीत
मन में सुमधुर सपने आयेगे
रात के अंधेरो में
और चाँद भी तुम्हारा
दोस्त बन जाएगा
खिलती धुप में ...................
...........मुकन्दा ...

No comments:

Post a Comment