Sunday, March 28, 2010

मुकन्दा एक पहलवान है कवि नहीं

मेरे बारे में हमेशा कहा जाता है कि
मुकन्दा एक पहलवान है
वो कवि की भांती
कही नहीं ठहरता
पर मैं चलता रहता हूँ हमेशा
मैं उनकी प्रतीक्षा नहीं करता
जो मुझे ढूंढ नहीं पाते है
उनके पास से दूर चला जाता हूँ
जो चाहते हैं मुझे मूर्ख बनाना
ठहर जाता हूँ मैं उनके पास
जिनके पास महसूस करता हूँ अपनापन
जिनके प्यार भरे दिल में जगह है मेरे लिए
और मेरी कवीता के साथ साथ
पहलवानी की कद्र है
क्यू की कलम दिमांग की ताकत है
तो बाहुबल दुनीया की ताकत है
आख़िर
मेरी पहुँच में है
सब कुछ
कलम भी और ताकत भी
जहा एक पलडा
ताकत तौलता है
तो दूसरा शब्द तौलता है
क्यू की 'मुकन्दा' जन भी बोलता है
तो समझो खून खौलता है ............
.................आक्रोशित मन...

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