आज का शहर ............
जानता हूँ मै
कैसी होती हैं शहरो की सुन्दरताएँ,
कैसे बनता है सुन्दर नक्काशी किया प्याला
इस हवा
इन तारों
इन घोसलों से अधिक सुन्दर नहीं वो
मालूम है मुझे
जानता हूँ कौन है मालिक इस शहर का
हल्के पाँवों से आगे बढ़ता
मीनार की तरह ऊँचा
ईश्वर के डरावने और गुलाबी होंठों से
पंखों की तरह अलग हो गया है आज का शहर
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