चलो दीपक जलाना है
जुबाँ खामोश है तेरी ,दिलो में कुछ विराना है
कही कुछ तो अँधेरा है , चलो दीपक जलाना है
चाँद गर साथ ना खेले , आसमान फिर भी काला है
मगर बेजोड़ हसरत में , एक नया सूरज बनाना है
रस्म-ए-रुखसत में ,क्यों करते हो चमन विराना
फकत एक फूल को तोड़ो ,जो आँखों में चढाना है
सियासी खेल में हमने ,ना जाने कितनो को मारा
दिलो में ख़ाक है बाकी मगर बुत फिर भी बनाना है
आइना हम से कहता है ,तू मुझसे दूर क्यों रहबर
नहीं तामीर बरखे हर्फ़ , खुद को खुद से बचाना है
मेरी रुखसार का नक्शा , करीने से नहीं सजाता
तुझे हर उजले पन्नो में , हमने फिर भी बिठाना है .. .....मुकन्दा
कही कुछ तो अँधेरा है , चलो दीपक जलाना है
चाँद गर साथ ना खेले , आसमान फिर भी काला है
मगर बेजोड़ हसरत में , एक नया सूरज बनाना है
रस्म-ए-रुखसत में ,क्यों करते हो चमन विराना
फकत एक फूल को तोड़ो ,जो आँखों में चढाना है
सियासी खेल में हमने ,ना जाने कितनो को मारा
दिलो में ख़ाक है बाकी मगर बुत फिर भी बनाना है
आइना हम से कहता है ,तू मुझसे दूर क्यों रहबर
नहीं तामीर बरखे हर्फ़ , खुद को खुद से बचाना है
मेरी रुखसार का नक्शा , करीने से नहीं सजाता
तुझे हर उजले पन्नो में , हमने फिर भी बिठाना है .. .....मुकन्दा
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