Sunday, March 28, 2010

दो पहिये दो हाथ..............


स्त्री पुरुष जीवन के दो पहिये है
या यु कहिये जीवन रूपी शरीर के दो हाथ है
कहते है दोनों पहियों से गाडी चलती है
मगर आज बताता हूँ आपको कि
दोनों पहियों में क्या अंतर है
दोनों हाथो का फ़्रक देखिये
घर में शेर की तरह घुसता है
और घुस कर
अकड़ भरी भाषा में उसके बाल पकड़ कर खिचता है
मारता है गन्दी गालियाँ बकता है
अपनी शारीरिक भूख शांत करता है
अपनी ही शर्तो पर
अब आपसे ये दूसरा हाथ छिपा भी क्या सकता है
सब कुछ तो सबको पता है
वो बेचारी क्या मुँह खोलूँ ?
अधिकार के नाम पर करता है अत्याचार
उसकी हालत उस शहद की मक्खी की तरह है
ना ही शहद का लालच छोड़ती है
ना ही उससे निकल पाती है
और ये ही दरद उसके ह्रदय को सालता रहता है
अपने अधिकारों को किस तरह दूर उपयोग करता है
रोज शराब की बदबू उसके सीने में उतारता है
और उसकी टूटी चूड़ियों का तल्ख़ अहसास
उसकी लाख कौशिश करने पर भी
बाहर नहीं थूका जाता
अब वो कैसे छुपाऊ या क्यों छुपाऊ
अगर छुपाती है
तो दुसरे हाथ की पशुता को छुपाना होगा
और क्या कहू
उसके अन्दर पवित्रता ढूंड़ता है
और अपने अन्दर बहशी पन
मानो वो पवित्र करार दी गई भावना है
वो आपसे कोई सम्वेदना नहीं चाहती है
ना ही ये मानाभिमान की चर्चा है
ये तो बस हॄदय और स्वेच्छा पर किया गया
दुराक्रमण है जो आपको बता रही है मुकन्दा के मुह से
ये तो बस इसलिए है कि मन की बात कहने से
दिल का बोझ हल्का हो जाता है
और नहीं कहने से
अनादर ही अन्दर जलती है वेदना
जब मै दुसरे हाथ को देखता हूँ
यानी पति को तब पता चलता है कि जीवन क्यों खराब है
अब एक पहेये से गाडी कैसे चलेगी
एक पहिया मनुष्य के आँसू भी नहीं धो सकता
शायद प्रतिशोध में उबलता हुआ
रक्त ही धोएगा इसे
यह मुकन्दा का अनुभव है
ऎसा नहीं है कि यह हरियाणा के गाव में होता हो
समस्त भारत इसकी चपेट में है
हो सकता है और
और कभी कभी समाचार-पत्रों में अप्रकाशित
किसी घर के
दोनों हाथो के झगडो के चित्र छप जाते हो
परन्तु क्या क्या यह समस्या का समाधान है
क्या इससे स्त्री के अधिकारों को बल मिलता है
यह सोचने का काम मेरा और आपका है
उसका नहीं .... ..........................
..... मुकन्दा .......................

1 comment:

  1. उसके अन्दर पवित्रता ढूंड़ता है
    और अपने अन्दर बहशी पन

    very nice

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