Sunday, March 28, 2010

धर्म के प्रशिक्षित दलाल...

वे हमेशा कही ना कही
किसी के विश्वास की ह्त्या
करते ही रहते है
इनके पूजा घरो में
इंसानी खून के नीचे
मरे हुए देवता बहते है
जहां ये बैठकर
इंसानों के विश्वासों की ह्त्या करते है
उनकी आँखे खोजती रहती है
गाव की गलियाँ
शहर की चौड़ी सड़के
और कुछ उदास परेशान
सीधे साधे लोग ,
वे जानते है कैसे हदे तोड़ी जाती है ,
कब कहाँ और किस तरह ,
मै जानता हूँ
उनकी बाते महज एक ढोंग है
लेकिन यहाँ बेशुमार लोग
उनकी बातो को
रुपहली आकाशगंगा समझते है ,
उनमे हर तरह के लोग है ,
वे वकील हैं वैज्ञानिक हैं
अध्यापक हैं नेता हैं
लेखक है कवि है कलाकार है
किसान है मजदूर है
छात्र है नौकरीपेशा है
अमीर है गरीब है ,
ये सब संशय की अनिश्चयग्रस्त में जीते है
तभी तो उन आदमखोर की हवस
बढ़ती ही जाती है ,
उनकी सख्त पकड़ के नीचे
संशय से भरा हुआ आदमी
सदियों से ही
उनकी कार्यशाला के विज्ञान की
प्रयोगशाला है ,
जहा ये उनके विश्वाश की
चीर फाड़ करते रहते है
मुंबई हो या रोहतक
दोनों ही उनके दिल के
ठीक उतने ही पास हैं
जितने शारीर के अंग ,
क्यों की वे जानते है दोनों ही जगह
इंसानों के बीच मुर्दों का वास है ,
उनका व्याकरण इस देश की
नस नस में बिखरा है
शब्दों के बीच घिरा हुआ आदमी
इनकी पकड़ के बहुत करीब है
क्योके जीने की तमीज और
ढोंग को मिटाने में हम बहुत गरीब है ,
गिरगिट की तरह रंग बदलते हुये
इस ज़माने में ये लोग ज़िंदा भूत है
हमारे साबुत और सीधे विचारों पर जमी हुई काई
और उगी घास
हमारी बेबसी और उथले पण का सबूत है ...........

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