Sunday, March 28, 2010

लंकापति नहीं जानी रे

खेलत राम रावण दुहूँ संगे
लंकापति नहीं जानी रे
तिय कौ मन सिया संग बसियाँ
मीडै उतै उत पानी रे
मीठै बैनन तहु छांड़ी तीरे
दावभाव सभु आनी रे
ढरकौहे नैन टेक सिया उर से
उर लागी दुहून वाणी रे
रामचंद्र आये सूझयौ पुछू
घरि भीतर भाहू तानी रे
मधुपावलि मधु वार 'मुकन्दा'
सौं खाइ धका लंका जानी रे .............
मुकन्दा

No comments:

Post a Comment