Sunday, March 28, 2010

चार दिवारी में नंगे लोग



जिन्दगी एक चाहत है
एक सियाह और दर्द-भरी
पथरायी चाहत
उम्र के बोझ से बोझिल
और मेरे शब्द
मुलाक़ात का एक दरवाज़ा है
जहा रात और दिन पतझड़ से लधे है
जहा पत्ते चुपचाप उड़ते है
और कलई किये हुए बर्तन जैसे चमकते है
खोखले लोगो ने
रंगीन तस्वीरों में
अपनी कमीज़ों की आस्तीनें ऊपर कर रखी हैं
फिर भी
यह मेरे दिल की कहानी नहीं है
यहाँ लोग चार दिवारी में नंगे घुमते है
और बाहर मुर्दों के कपडे पहन कर चलते है
इस शहर की बात ही निराली है
जूते सफ़ेद तो जुराबे काली है '''''''''
'''''आक्रोशित मन..

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