Sunday, March 28, 2010

पद चिन्ह रेखा..............

मेरे पैदा होते ही
मेरे बाप ने
अखाडा बिछा दिया
और पहलवानी का काढा
घुट्टी की जगह पिला दिया
मेरी नाक के सामने
ओक्सिजन की जगह
प्रतिरोध की बदबू रख दी
ताकी हर सांस में
मेरे बाप का प्रतिरोध
मेरे ह्रदय के पार बिम्बित हो जाए
और ठूंस दी मेरे मुह में
गोलाबारी की भस्म
फिर फेंका उन्होंने
एक काग़ज़ और एक क़लम
मेरे हाथों में ठूँस दी एक सीमारेखा
कागज़ ने कहा तू भी
मेरी तरह कोरा है मुकन्दा
मेरी तरह तुझ पर जो लिखा जायेगा
वो कोरे शब्द नहीं
एक सनद बन जायेगी
मैंने धीरे से कलम को
कागज़ पर चलाया
कलम ने लिखा
तेरे लोगों में
शेष है अभी एक समूह
उदास चेहरे लिए घूमता है जो
लज्जित करता है हमें
मुकन्दा उनकी गरदनें कस दो
मै कहा -
हे कलम तुने ये क्या लिख मारा
हमारे बीच छेद हो सकते है
परन्तु मतभेद नहीं
कलम ने कहा-- प्रतिरोध
मैंने कहा मुझे कलंकित करना चाहते हो
मैंने फिर कभी वो कलम नहीं उठाई
बारिश की हर बूंद को
मैंने कलम समझा
टपक रही है जो
मेरे शब्द बनाकर
अतीत की छत पर
आज भी वो पुरानी कलम
चीत्कार कर रही है -- प्रतिरोध
आज भी
जीवन पथ पर
जब मैंने मुडकर देखा
ना मेरे पद चिन्ह है
ना पद चिन्ह रेखा ..........
..मुकन्दा

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