Sunday, March 28, 2010

हे निष्ठुर ज्योत्सना..........

क्यों नभ फ़ैली तुम
बन विवर्तन
अपरिचित सा ये
नयनोन्मीलन नर्तन तुम्हारा
लगता है जैसे
नभ पर हो
दिगंत-छबि-जाल

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