Sunday, March 28, 2010

हे मेरी प्यारी माँ ...

एक किसान के घर जन्मी
एक महनत कश किसान की बेटी
सुबह की ताजी -सी शीतल
गम्भीर लहलहाती फसलो सी शांत
सहिष्णुता की देवी ,
धरती माँ की तरह विशाल
हे मेरी जन्मदायनि माँ
अपने आँचल में दुनिया को समेट लेने की
चाह रखने वाली
हे मेरी प्यारी माँ
सिर पर लिपटी ओढनी
फेंटा कमर में,नंगे पैर
लांघ खेत खलियानों की कँटीली झडियाँ
पीठ पर गट्ठर का बोझ
जाती है धीरे-धीरे चलते हुए
खेतो की पीठ-दर-पीठ
पार कर जाती है धीरे-धीरे
अनेक टेढे मेढे रास्ते
कुओ की गहराई से खीचकर
भर कर पानी, पका कर खाना
दूर, निर्जन कष्टकर रेतीले खेत पर
मेड़ से मेड़ तक श्रम-ध्वनि पूर्वक खुदाई के बाद
विश्राम से रहित
सभी बच्चो के लिए
धरती को चीर कर अन्न उगाने वाली
तू कभी नहीं थकती हमेशा चलती जाती है
पोंछते हुए पसीना आँचल से
हे मेरी माँ

एक दिन पूछा मैंने--
माँ कहा से आती है ये शक्ति और ज्ञान तुझमे
वो धीरे से मुस्काई
मै जन्म दायनी हूँ
मुझे पता है जीवन कैसे आता है
और कैसे पलता है
उसके लिए मुझे किसे स्कूल कालिज जाने की
जरुरत नहीं
कुदरत ने वो ज्ञान मुझे स्वभाव में दिया है
की एक माँ अपने बच्चो को कैसे पालती है
मेरे लाल मुकन्दा
तू पढ़कर बहुत सिख गया मेरे बच्चे
पर जब फुरसत मिले इस माँ के
हृदय को पढ़ना
संसार का समस्त ज्ञान इसके सामने बौना है
क्यों की ज्ञान और जीवन का सर्जन तो यही से होना है
मै विस्मय से--
माँ के चारे को ताकता रहा
देखा माँ ने मुझे एक बार
फिर हरा दिया
आखिर माँ तो माँ होती है
पिता बीज है तो माँ धरती
बीज को अपने भीतर से
पौधा बनाकर बाहर निकालती है वो
और इससे पहले की समझा पाती
कुछ और या पूछ पाता मै
कुछ और सत्य
चली गई
चली गई पहले की तरह
मुझे निरउत्तर सा छोड़कर
अपनी गुरु-गम्भीर चाल से
बच्चो की बेहतरी के लिए
उन खेतो खलियानों की और
जहां से मिलाती है ऊर्जा
सृजन शक्ति की
चाहे वो जीवन हो या अन्न
मै नहीं भूल पाउँगा तुझे
हे मेरी प्यारी माँ ... ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,आक्रोशित मन...

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