Sunday, March 28, 2010

जिन्दगी ,जो देरी के लिए माफ़ नहीं करती

ये मुंबई की हवा
वो मेरे गाव के खेत
वो धान की ख़ुशबू,
ये मुंबई की चांदनी रात
ये हमेशा जगमगाती रहेगी
तब भी
जब मैं डूब जाउंगा
अरब सागर की अनंत गहराइयों में
क्योंकि ये सब मेरे आने से पहले थी
और बाद में मेरा हिस्सा भी न थी -
ये तो बस
संसार के मूल की प्रतिलिपि
ही थी वक़्त के वैभव की
परन्तु जो दुनिया 'मुकन्दा' ने देखी ,
वो असल थी, कोई प्रतिलिपि नहीं
परन्तु वहा तक जाने में
मुकन्दा को थोड़ी देरी हो गई
जिन्दगी की घूरती आँखे
जो देरी के लिए
किसी को भी कभी माफ़ नहीं करती
मैं इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं कह सकता
मैं इससे ज़्यादा और कुछ जानता भी नहीं

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