Sunday, March 28, 2010

भयानक कंधों के जुल्म...

ना जाने क्यों व्याकुल है इंसानियत के रहबर
क्यों आवाज नहीं निकल रही उनके होठो से
और आराम फ़रमा रहे हैं सभी दैत्य
हर कुकर्म कर लेने के बाद
व्याकुलता में तन सी गई है उनकी सोई आत्माये
उनके को के साए
और भी अधिक भयानक बना रहे है
उनके चेहरों को
बार- बार प्रेतात्माएँ
प्रकट होती हैं उनके चेहरों में
सपनों में उन्हे दिखते है वह अभिशप्त नगर
ज्ञात नहीं जिसे अपनी ही नियति
दिखाई देते हैं दौलत के स्तम्भ और उद्यान
सुबह की नींद में अलसाए हुए
जागते है जब वे

स्वागत में आतुर है उनके ढेर सारे फूल
जो खिलकर कब के मुरझा चुके हैं
सुरा और शबाब से भरपूर है उनकी राते
जो संकेत देते हैं शबाब के प्रेमी
सुरापान कर रहे पुरुषों में छिपे दैत्यों का
आरम्भ हो जाता है कुकृत्यों का दौर
अश्लील हो जाती है भाषा
गरमी आ जाती है वातावरण में और विवेकहीनता भी
बहन और बेटियों की अस्मत के सौदों पर
अपनी सुखद नियति की कैद में
किसके विषय में सोच रहे हो आप
कि वे आपके किसी काम आयेगे
साहस के पंख उडा ले जायेगे इनको
अगर तुम थोडा सा भी दिखा दो
तुम्हारे गुंगेपन से ही टिकी है इनकी कुहनिया धरती पर
और खो गए हो आप उनकी झूठी कहानियों में
किसमें थी इतनी शक्ति और विवेक
जो छीन सके आपकी आवाज
अपने गूंगेपण को दूर करो दिन बीतते ही
और अपने बुद्धिमान ललाट के बल
मृत कर दो इन दैत्यों को
जो आराम कर रहे है आपकी खाट पर ......
....मुकन्दा

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