Sunday, March 28, 2010

पहलवान राजा.......

सरकार हो कैसी भी
पर राजा पहलवान ना हो
महान पहलवान का जीना हराम होता है
लड़ता है जब वह आज़ादी के लिए
जीता है जब वह मूल्यों के लिए
खडा होता है जब वह
शोषण के खिलाफ
नकेल कस देता है जब वह
अपराधियों पर
जीना हराम कर देता है उनका
जो इंसानियत को कभी जीने नहीं देते
खडा हो जाता है
उनके सामने जो बारिश की बूंद पर चढ़कर
आसमान पर छेद करना कहते है
काल बन जाता है उअके लिए
जो अभिमान, क्रोध, अहम की आग में
दुसरे का उपहास उडाते है
डर के कापने लगते है वे लोग
जिनके लिए सारी चीज़ें अन्धी हो गयीं हैं
जहां से मानवता का बीज बोया जाता है
और जहां जाती धर्म को पकाकर खाया जाता है
नफ़रत और रोशनी में भेद करते है
जिस थाली में खाते है
उसी में छेद करते है
चुकाता है पहलवान राजा मूल्य उसका
अपनी ताकत से
अफसरशाही तंत्र एकजुट हो जाता है
वे समस्त चीजे जिन्हें वह बांधना चाहता है
एकजुट होकर विषाद का बीज बोने लगती है
उसके साम्राज्य में
खा जाता है हर शब्द
जो अन्याय के खिलाफ होता है
पहलवान राजा ही देता है शक्ति
प्रताड़ित जनता के कष्टों को
होता है जब कभी वो राजा सदियों में एक बार
और उअसके बाद
करता है तांडव शैतान
पहलवान की छाती पर
करता है वह क़त्ल
आज़ादी को उसी आज़ादी से
नहीं सुनाई देती इसी वज़ह
महान पहलवानों की आवाज़
आज के दौर में

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