Sunday, March 28, 2010

नभ ज्योत्सना

शाश्वत-शृंगार बने
सहस्र बार असुहार बने
ज्योति-चुम्बित सजे
सौरभ-हार
हृदय के हास और
गुंजित रजत-प्रसार
हे नभ ज्योत्सना
तुहिन-अश्रु बन निशा का
दे धरा को प्रदीप प्रवाल
बन शाश्वत-शृंगार ..........
...आक्रोशित मन...

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