Sunday, March 28, 2010

बहरहाल मैं खुश हूँ.

पहलवानी में उलझता हूँ
चाहकर भी ना सुलझाता हूँ
कुछ इस कदर लडाका सा
खुद से ही लड़ जाता हूँ
कभी कभी चुपके से
साए की तरह जाके
नजर बचाके
मम्मी का रखा
सारा दूध पी जाता हूँ
एकाकीपन की हालत में
बैलो से लड़ता हूँ
कुत्तो कों डांटता हूँ
भाई का मक्खन चुराकर
मजे से चाटता हूँ
पुरजोर कोशिशें करता हूँ
अखाडे में जाकर
बादाम खाकर
जीत के ही आउंगा
जीत का लबादा ओढे..
कदम दो कदम ही चलता हूँ की
मेरे साथ सिसकते
विलाप करते है मेरे शब्द
जीत के लबादे कों देखकर
जहाँ आलोकित नहीं होते अपने शब्द
दिन बीतते ही
अपने पहलवान ललाट के बल
मैं गिर पङता हूँ मृत लबादे पर
चिल्लाता हुआ: "क्षमा करना मुझे हे नेरे शब्दों" "
बहरहाल मैं खुश

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