Friday, April 2, 2010

नंगे मुर्दों क़ा शहर..

जिन्दगी एक चाहत है
एक सियाह और दर्द-भरी
पथरायी चाहत
उम्र के बोझ से बोझिल
और मेरे शब्द
मुलाक़ात का एक दरवाज़ा है
जहा रात और दिन
पतझड़ से लधे है
जहा पत्ते चुपचाप उड़ते है
और कलई किये हुए बर्तन
जैसे चमकते है
खोखले लोगो ने
रंगीन तस्वीरों में
अपनी कमीज़ों की
आस्तीनें ऊपर कर रखी हैं
फिर भी,
यह मेरे दिल की कहानी नहीं है
यहाँ लोग चार दिवारी में
नंगे घुमते है
और बाहर मुर्दों के कपडे पहन कर
चलते है ,
इस शहर की बात ही निराली है
जूते सफ़ेद तो जुराबे काली है


...........मुकन्दा

2 comments:

  1. खोखले लोगो ने

    रंगीन तस्वीरों में

    अपनी कमीज़ों की

    आस्तीनें ऊपर कर रखी हैं

    vah bahut achchha chitran

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  2. mukanda,
    yahan post ki gai aapki sabhi rachna dobara se padhi, yun pahle bhi padh chuki hun. bahut umda khayaalat hain jo hakikat bayan karte hain. likhte rahen. bahut badhai aur aashish.

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