Tuesday, April 6, 2010

हारा हुआ अन्धेरा ...तुम मेरे कौन हो?


पहचाना मुझे

मै मुकन्दा

तुम मेरे दोस्त हो

मै आपका दोस्त

क्या आपका मेरा नाता बस इतना ही है

अर्धचन्द्राकार बिन्दुओ पर

आप मुझे जानते हो

और मै आपको

हर्फो के इन बरखों पर

आपने मुझे क्या लिखा

और मैंने क्या

क्या कभी देखा है आपने मुझको

जैसा मैंने बताया वैसा मान लिया आप ने

मेरे शब्दों की कजरती छाया

क्या आपने अपने उपर पड़ने दी

क्या मुझे मिलकर आप सहज हो पाओगे

बन्दूको वाले शब्दों में

पहाडो की तरह क्या रट पाओगे मुझे

आपने ही बताया मुझे

शब्दों को कैसे बाटा जाता है टुकड़ो में

अतीत के शब्दों को कैसे काटा जाता है

भविष्य की तलवार से

मेरे शब्दों की आहट

आपकी शांत भूमी को महासागर में बदल देती है

मोमबत्तियों की मंद रोशनी में

आपके चमकते शब्द

सपनों की गठरी लेकर लौटने लगते है

विराम पथ पर



आपने देखा हो या नहीं

मगर मैंने देखा

आपके शब्दों में

रोशनी की आहट दिखाई दी मुझे

जिसकी रोशनी में मैंने

ना जाने कितनी ही कविताओं को जन्म दिया

फिर तुमने भी उन्हें दिल से

चुन कर अलग नहीं किया

खुद के साथ मुझको भी चलाते रहे

जर्जर शब्दों को अर्थ देते गए

सच बताना तुम मेरे कौन हो?



मेरे दाई और मानवता के चुने हुए शब्द है

और बाई और

कपट की हँसी के दाँव-पेंच

दिलो का हारा हुआ अन्धेरा

और चुने ख़ून की बूँद की लाशें

नदी की काली गहराई में

डूबने लगती है

तब मेरे आक्रोश की यातना

अपने अपार ममत्व से आगे निकल जाती है

आकाश का निर्धूम नीलापन मेरे शब्दों में

आक्रोश भरने लगता है

आगे सब तो तुम जानते ही हो

मेरी शाश्वत आक्रोशित दिशायें

सबको मालूम हैं

और मुझमें आप सभी के प्यार का उफ़ान

सचमुच दोस्तों आप मेरे दोस्त हो

और मै हाथीदाँत के पिंजड़े में कसा हुआ

आपका दोस्त
........................ आक्रोशित मन मुकन्दा

No comments:

Post a Comment